Monday, December 15, 2008

मेरी प्यारी रजाई



मेरी रजाई गरम-गरम
इसके अंदर सोते हम
यह मुझसे भी भारी है
लेकिन मुझको प्यारी है
ठंडक से लड़ जाती है
सर्दी से दूर भगाती है
मुझको अपनी गोद में लेकर
परी लोक तक जाती है
जब गर्मी आ जाती है
ये बक्से में छिप जाती है

6 comments:

Vinay said...

भई बहुत मस्त कविता है, मज़ेदार! और क्या कहूँ।

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चाँद, बादल और शाम
http://prajapativinay.blogspot.com/

परमजीत सिहँ बाली said...

बढिया कविता लिखी है।आजकल रजाई सचमुच बहुत प्यारी लगती है।

Anonymous said...

मज़ेदार!

Varun Kumar Jaiswal said...

बहुत अच्छे , मज़े आ गए |
जग -जग जीओ बचवा |

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

CHALO THAND HAI.SIGANGANAGAR ME BUNDA BANDI HO RAHI HAI. NARAYAN NARAYAN

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

बहुत प्‍यारी कविता है, बधाई।