
जाओ जाओ सर्दी जी
गर्मी जी को आने दो
स्वेटर और रजाई को
बक्से में पहुंचाने दो
कोहरे की चादर को ओढे
ऊंघते रहते सूरज दादा
सर्दी हवा लगती है जैसे
टीचर ने मारा हो तमाचा
झपकी जैसे छोटे दिन हैं
रातें कोई लंबी सडक
जान पे मेरी बन आई है
पर क्या है तुमहें कोई फरक
भूल चुके हैं खेलकूद सब
घर में दुबके रहते हम
कांप रहे हैं थरथर थरथर
अब तो ले लेने दो दम
गर्मी जी को आने दो
स्वेटर और रजाई को
बक्से में पहुंचाने दो
कोहरे की चादर को ओढे
ऊंघते रहते सूरज दादा
सर्दी हवा लगती है जैसे
टीचर ने मारा हो तमाचा
झपकी जैसे छोटे दिन हैं
रातें कोई लंबी सडक
जान पे मेरी बन आई है
पर क्या है तुमहें कोई फरक
भूल चुके हैं खेलकूद सब
घर में दुबके रहते हम
कांप रहे हैं थरथर थरथर
अब तो ले लेने दो दम
5 comments:
बबलू सर्दी में तो कपडे पहनकर बच जाएंगे लेकिन गर्मी में कपडे उतार भी तो नहीं सकते ना हा हा हा अच्छी कविता लिखी है
मुझे भी सर्दी ही अच्छी लगती है, गर्मी में ही मन घबराता है, इसलिए मेरी कविता तो "आओ आओ सर्दी" ही होगी
अगर सर्दी को जमा कर लिया जाय तो गर्मी में काम आएगी :)
DOST EK KASAK PAIDA KAR DI APNE KI KASH........
बबलू अंकल, आपने मेरा ब्लॉग देखा है क्या ? क्या मैं आपकी कविता अपने ब्लॉग में इस्तेमाल कर सकती हूँ ?
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