Thursday, January 1, 2009

जाओ जाओ सर्दी


जाओ जाओ सर्दी जी
गर्मी जी को आने दो
स्वेटर और रजाई को
बक्से में पहुंचाने दो
कोहरे की चादर को ओढे
ऊंघते रहते सूरज दादा
सर्दी हवा लगती है जैसे
टीचर ने मारा हो तमाचा
झपकी जैसे छोटे दिन हैं
रातें कोई लंबी सडक
जान पे मेरी बन आई है
पर क्या है तुमहें कोई फरक
भूल चुके हैं खेलकूद सब
घर में दुबके रहते हम
कांप रहे हैं थरथर थरथर
अब तो ले लेने दो दम

5 comments:

मोहन वशिष्‍ठ said...

बबलू सर्दी में तो कपडे पहनकर बच जाएंगे लेकिन गर्मी में कपडे उतार भी तो नहीं सकते ना हा हा हा अच्‍छी कविता लिखी है

Sunil Deepak said...

मुझे भी सर्दी ही अच्छी लगती है, गर्मी में ही मन घबराता है, इसलिए मेरी कविता तो "आओ आओ सर्दी" ही होगी

विवेक सिंह said...

अगर सर्दी को जमा कर लिया जाय तो गर्मी में काम आएगी :)

Doobe ji said...

DOST EK KASAK PAIDA KAR DI APNE KI KASH........

Anonymous said...

बबलू अंकल, आपने मेरा ब्लॉग देखा है क्या ? क्या मैं आपकी कविता अपने ब्लॉग में इस्तेमाल कर सकती हूँ ?