
पलकों की सांकल
खटका रही है
निंदिया रानी आ रही है
निंदिया के रथ में
चंदा का घोड़ा
पूरब से निकला
पशिचम को दौड़ा
तारों की चुनरी
लहरा रही है
निंदिया रानी आ रही है
निंदिया ने खोली
सपनों की झोली
कितने खिलौने
कितनी ठिठोली
सपनों में परियां
मुसका रही हैं
निंदिया रानी आ रही है
शोर निकल जा
दरवाजे से
थोड़ा ठहर तो
रात निगोड़ी
होरिल को
निंदिया आ रही है
मममी लोरी सुना रही है
पलकों की सांकल
खटका रही है
निंदिया रानी आ रही है
3 comments:
उम्दा व लाजवाब रचना।
लोरी ख़ूबसूरत लगी . बहुत उम्दा
गणेश उत्सव पर्व की शुभकामनाये
bachapan ke din bachchon ke saath phir lautate hain....vaise lagata nahin hai yeh tumhari lori se so jata hoga...
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