Saturday, November 29, 2008

मम्मी ने दिया बबलू को धोखा




बबलू स्कूल तो जाते नहीं था इसलिए दिनभर घर में शरारतें करता । वह कभी गुस्सा हो कर मारपीट पर उतर आता तो कभी बिना बात के ही रो-रोकर आसमान सिर पर उठा लेता। दूध पीना बबलू को एक दम अच्छा नहीं लगता था पर सबसे बुरा लगता था नहाना । पर क्या करें मम्मी कभी मानती ही नहीं थी कभी-कभी तो वह अपनी चीख-पुकार और भागमभाग से बच जाता पर अकसर मां के आगे उसकी एक न चलती । उस दिन भी ऐसा ही हुआ बबलू का मन नहाने का एकदम नहीं था जैसे ही उसने देखा कि मम्मी तौलिया साबुन लेकर उसे नहलाने की तैयारी में हैं वह तेजी से दरवाजे की तरफ भागा लेकिन मम्मी ने किसी तरह उसे दौड़ाकर पकड़ ही लिया । बबलू ने बहुत हाथ-पैर मारे लेकिन मम्मी की पकड़ से छूटना मुश्किल था बस फिर क्या था बबलू लगा चीखने-चिल्लाने हार कर मम्मी ने बबलू को फुसलाते हुए कहा कि अगर वह नहा लेगा तो मम्मी उसे मूवी दिखाने ले जाएंगी‌ बस फिर क्या था बबलू तो एकदम खुश नहाने के लिए जल्दी से मम्मी की गोद में आ गया । मम्मी ने बबलू को साबुन लगाकर खूब अच्छी तरह से नहलाया नहाने के बाद बबलू ने झटपट कपड़े भी पहन लिए अब वह मूवी जाने के लिए तैयार था लेकिन यह क्या मम्मी तो घर के दूसरे काम करने लगीं । बबलू ने मम्मी से पूछा मम्मी हम मूवी देखने कब जाएंगे । मम्मी ने अपनी बड़ी आंखों से बबलू को घूरा और कहा- कभी नहीं । मम्मी की ना सुनकर बबलू एक दम रुआंसा हो गया । उसने भी मम्मी को सबक सिखाने की सोची बबलू ने सोचा कि क्या किया जाए उसे लगा झूठ बोलकर नहलाने का बदला खुद को गंदा करके ही लिया जा सकता है इसलिए वह जोर से रोते हुए घर के बाहर भागा और जमीन में लोट-लोटकर रोने लगा
क्रमशः

Tuesday, November 25, 2008

बबलू की कहानी


टौंस नदी के बांध के पास बसा है यह छोटा सा मुहल्ला‍ इस मुहल्ले का कोई भी नाम हो सकता है‌ चलिए हम इसे राहुल नगर नाम दे देते हैं‌ कभी यहां अंगरेजों की छोटी सी बस्ती थी‌ यहां आज भी कुछ ईसाई समुदाय के लोग रहते हैं‌ ईसाइयों के मुहल्ले से थोडा हटकर एक पुरानी बस्ती है जिसमें यहां के पुराने बाशिंदे रहते हैं ये मूलतः मछुआरे हैं और शायद ईसाई बस्ती के बसने से बहुत पहले से यहां रहते चले आ रहे हैं‌ ईसाई और मछुआरों के बीच की जगह पर आजकल कुछ नए घर बनने लगे हैं‌‍ इनमें से अधिकतर घर वकीलों के बने हैं इस जगह से कचहरी बिलकुल पास होने के कारण इन लोगों ने यहां घर बनवा लिया है‌ इन्हीं वकीलों में से एक वकील के बेटे हैं बबलू ‌अभी स्कूल नहीं जाते खूब मस्ती करते हैं उनके ढेर सारे दोस्त है ‌संजू अन्नू पोलू मंगल पिंकी गुड्डू पप्पू राजू यह है बबलू की मंडली‌ अपन बहन गुडिया के साथ बबलू दिनभर इनके साथ मस्ती करते रहते हैं। कभी दीवार पर चढने की कोशिश करते हैं तो कभी किचन गार्डेन में जाकर टमाटर और मटर तोडते हैं‌ या मूड हुआ तो सामने वाले मैदान में नीम के पेड के नीचे छुआ-छुअंत विष-अमॄत या गेंदतडी खेलते हैं‌ कभी कभी ईसाइयों के मुहल्ले में बने पादरी के बंगले के पास बने स्लाइडर पर (जिस का नाम न जाने किसने सरकउंवा रखा दिया था )जाकर खूब सरकते थे‌ यानी खेलकूद और मौज-मस्ती यही है बबलू और उनके दोस्तों का काम ।
क्रमशः

Saturday, November 22, 2008

चांद और बिल्लू



चांद उतर आया धरती पर
लगा पूछने बिल्लू से
छत के कोने में बैठे हो
क्यों चुपचाप निठल्लू से
बिल्लू बोला चींचीं चिड़िया
आती नहीं क्यों मेरे घर
मंडराती क्यों नहीं है तितली
कागज के फूलों पर
अमरुदों के बाग कहां हैं
मुझको दिखते नहीं हैं क्यूं
कोई मुझको नहीं बताता
इसलिए रुठा बैठा हूं

Sunday, November 16, 2008

लिली तो है शैतान की दादी



लिली-मिली हैं जुड़वा बहनें
इनकी जोड़ी के क्या कहने
मिली बहुत है सीधी-सादी
लिली तो है शैतान की दादी
लिली खूब शरारत करती
होमवर्क से भागी-फिरती
टिफिन खोलकर क्लास में खाती
छिपकर सबके चित्र बनाती
जब टीचर गुस्से में आती
लिली बातें खूब बनाती
लिली नहीं मैं मिली हूं मैम
कहकर टीचर को बहकाती
मैम भी मुश्किल में पड़ जातीं
लिली-मिली में भेद न पातीं
दोनों के चेहरे एक जैसे
टीचर जी पहचानें कैसे

Monday, November 10, 2008

चंपक वन में टैलेंट हंट



चंपक वन के हर घर में
एक चर्चा थी जोरों पर
जंगल में आने वाला है
बालीवुड का एक डाइरेक्टर
हम-सब की किस्मत का ताला
जल्दी ही खुलने वाला है
अपुन भी बन सकते हैं हीरो
टैलेंट हंट होने वाला है
बंदर उबटन लगा रहा था
भालू ने थ्रेडिंग करवाई
गधे ने अपने सुर को साधा
और हाथी ने कमर घटाई
मार्शल आर्ट सीख कर चूहा
सीना ताने घूम रहा था
बगुला भगत से कल्लू कौआ
योगा करना सीख रहा था
डंकी डाइरेक्टर आया
सिर पर काला हैट लगाए
सारे उससे मिलना चाहें
पर कोई भी मिल ना पाए

शुरु हुई फिर धक्का-मुक्की
चंपक वन में मच गया शोर
शेरु दादा नींद से जागे
वे समझे कि हो गई भोर
बड़ी जोर की भूख लगी थी
शेरु जी मन में मुसकाए
शेरु जी की झलक जो देखी
फिर तो सबके उड़ गए होश
चूहे जी तो डर के मारे
खड़े-खड़े हो गए बेहोश
अपनी जान बचाकर भागे
चंपक वन के लोग तुरंत
होता शुरु कि इससे पहले
बंद हुआ टैलेंट हंट

हाथी दादा


हाथी दादा बहुत बड़े
गन्ना खाते खड़े-खड़े
कुछ तो तुम भी काम करो
जग में रह कर नाम करो
मम्मी-पापा आफ़िस जाते
मैं भी जाती हूं स्कूल
पढ़ना-लिखना तुम्हें न आया
कर दी तुमने कितनी भूल
सोच रही क्या जुगत लगाऊं
कैसे तुमको जाॅब दिलाऊं